चौराहे पर किसी बेवस की लुटती इज़्ज़त अब शरेआम हो जाती है। चलती फिरती मचलती, उमंगों में रंगी ज़िन्दगी बेजान हो जाती है। नाजुक सी चिड़ियों को नोंच खाने पर टिकी रहती है गिद्धों की नज़र। शाम ढलते ही मेरे गुलजार से शहर की गली समशान हो जाती है।। #nojotohindi #hindipoetry #urvilpoetry #urvil #streetofpoetry