कैसे हैं ये लोग? *********** ये गुनाहों की बस्तियां जहाँ कांटे बोते लोग कंही मयखाने की मस्तियाँ, कंही भूखे सोते लोग। है गली नहीं आबाद और महलों में जीते लोग खंजर छुपाए हाथ,हैं कुछ जख्म सिते लोग बेशर्म ऐय्याशियाँ और चंदन पिरोते लोग यहां धर्म हुआ धंधा और चंदा ही बना भोग यहां हुजूम है अंधा और राह बताते लोग एक मौके की तलाश बस आजमाते लोग। जहाँ अपने नही अपने,हैं गिड़गिड़ाते लोग राह चाँद की बनाते ये बजबजाते लोग। दिलीप कुमार खाँ""अनपढ़"" #HEART_BEA_TEA #Love #thought #Hindi #poem #friend