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हँसता खिलखिलाता उजड़ा, आखिर क्यों उपवन..! ज़िन्दगी

 हँसता खिलखिलाता उजड़ा,
आखिर क्यों उपवन..!

ज़िन्दगी मांग रही मौका दूसरा,
काँपता फिर रहा बांवरा मन..!

सुलग रही है चिता अरमानों की,
तड़प रहा है ये बदन..!

कैसा मायाजाल है जीवन तंगहाल है,
ख्याल सदा ही रहता है हाय माया हाय धन..!

किस्तों में मिल रही हैं ख़ुशियाँ,
ब्याज़ सहित गम का समन..!

ज़िन्दगी से निराश कहीं जमीं न आकाश..!
सुलझते सुझलते ये कैसी उलझन..!

न गीत सुनहरे न ही मीत का सहारा,
ख़्याल संग हो रहे हैं हम दफ़न..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #NightRoad #yekaisiuljhan