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बेबस व मजबूर बुजुर्गो की जिंदगियों का हाल ना पूछ



बेबस व मजबूर बुजुर्गो की जिंदगियों का हाल ना पूछो,
जिन्हें छोड़ दिया जाता है दर-दर की ठोकरें खाने को।

कोई नहीं देता है सहारा कोई नहीं आता हाथ बढ़ाने को,
जब अपने ही ठुकरा देते हैं तो गैरों से क्या उम्मीद करेंगे?

बेबस और लाचार हो गए हैं शरीर भी साथ देता नहीं है,
मौत भी आजकल दुश्मन लगती है मांँगने से न मिलती है।

ना घर है ना है कोई ठिकाना अपनों ने बना दिया बेगाना,
बुजुर्ग होते हैं घर की धरोहर कोई समझता क्यों नहीं है?

जब तक है बुजुर्गों का साया महफूज हैं हम हर बला से,
इनके आशीष से बने है काबिल कोई मानता क्यों नहीं है?

 Any writer can write about *"मौत भी आजकल दुश्मन लगती है"*

*RULES*📜-

1. The word given above must come atleast once in your write-up.

*Poem should be in maximum 20lines/200 words,*


बेबस व मजबूर बुजुर्गो की जिंदगियों का हाल ना पूछो,
जिन्हें छोड़ दिया जाता है दर-दर की ठोकरें खाने को।

कोई नहीं देता है सहारा कोई नहीं आता हाथ बढ़ाने को,
जब अपने ही ठुकरा देते हैं तो गैरों से क्या उम्मीद करेंगे?

बेबस और लाचार हो गए हैं शरीर भी साथ देता नहीं है,
मौत भी आजकल दुश्मन लगती है मांँगने से न मिलती है।

ना घर है ना है कोई ठिकाना अपनों ने बना दिया बेगाना,
बुजुर्ग होते हैं घर की धरोहर कोई समझता क्यों नहीं है?

जब तक है बुजुर्गों का साया महफूज हैं हम हर बला से,
इनके आशीष से बने है काबिल कोई मानता क्यों नहीं है?

 Any writer can write about *"मौत भी आजकल दुश्मन लगती है"*

*RULES*📜-

1. The word given above must come atleast once in your write-up.

*Poem should be in maximum 20lines/200 words,*