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मैं तुझे आख़िरी मुलाक़ात पे, चूमना नहीँ चाहता था। न

मैं तुझे आख़िरी मुलाक़ात पे,
चूमना नहीँ चाहता था।
न गले लगने की हिम्मत थी,
न ये कहने की जुर्रत थी।
तू रुक जा थोड़ी देर ही सही,
बस इतना तो कहती।
अल्फाज दम तोड़ चुके हैं,
हो सके तो अब मेरी ख़ामोशी को समझना।।

©ANURAG DUBEY
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