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वो अजनबी अब अजनबी कहाँ रहा दिल के लिये आ बसा जो मन

वो अजनबी अब अजनबी कहाँ रहा दिल के लिये
आ बसा जो मन-मस्तिस्क में मेरे,बिना कोई सहारा लिये
सोचती हूँ कह दूँ ,दिल का मालिक बन चुका वो,बिना कुछ दिये
इन्द्रियाँ वशीभूत हो चुकीं मेरी,सज़ा काट रहीं,बिना अपराध किये
बेबस हूँ,कैसे कहूँ अपना उसे,बिना उसके दिल में अपनी जगह किये
वो अजनबी,अजनबी नहीं मेरे लिये,कैसे कहूँ उससे,वो बना सिर्फ़ मेरे लिये!!
🌹 Challenge-142 #collabwithकोराकाग़ज़ 

6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए :)

#वोअजनबी #कोराकाग़ज़ #yqdidi #yqbaba  #YourQuoteAndMine
Collaborating with कोरा काग़ज़ ™️
वो अजनबी अब अजनबी कहाँ रहा दिल के लिये
आ बसा जो मन-मस्तिस्क में मेरे,बिना कोई सहारा लिये
सोचती हूँ कह दूँ ,दिल का मालिक बन चुका वो,बिना कुछ दिये
इन्द्रियाँ वशीभूत हो चुकीं मेरी,सज़ा काट रहीं,बिना अपराध किये
बेबस हूँ,कैसे कहूँ अपना उसे,बिना उसके दिल में अपनी जगह किये
वो अजनबी,अजनबी नहीं मेरे लिये,कैसे कहूँ उससे,वो बना सिर्फ़ मेरे लिये!!
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