एक पढ़ी थी कहानी बचपन में "ज़मीन की" गज थी शायद दो, गज थी शायद दो ताउम्र की भागा दोड़ी कर नाप सका ना जो। इस ज़मीन कि भी हकीकत अजीब निराली हैं, अपनो से अपनो कि हैसियत मापी तोली और तो और मतलब भी इसने निकाली हैं। कुछ ने तो थोड़े से जमीन कि ख़ातिर, आपनो के लिए ही चक्रव्यूह रच डाली हैं । गर आए मुसीबत, हो करना कुछ भी नीलाम, तो जुबां पे अपनो कि ये ज़मीन ही पहले आयी हैं। अब कहे कैसे दोस्तों यही तो है वो जो संग मुसीबत पहाड़ का लाई हैं। ये ज़मीन हैं साहिब भला किसने अबतलक इसकी सच्चाई बतलायी हैं। हूँ अनपढ इन्सान, बाते और मैं भला कब समझदारो को भाता हूँ, जाहिल कवि हूँ फिर भी तुम्हें समझाता हूँ, फक्कड़ता से अब बात पते कि बताता हुँ। की अंत में मय्यत पे कंधो कि जरूरत होगी चार, अंत में कंधो कि जरूरत होगी चार,, एक होगा शायद बेटा एक भतीजा और दो ही रिश्तेदार। तब होगी ना जरूरत जमीन कि चाहिए होगी कंधे सिर्फ और सिर्फ चार। एक पढ़ी थी कहानी बचपन में "जमीन की " गज थी शायद दो, गज थी शायद दो ताउम्र की भागा दोड़ी कर नाप सका ना जो।। ©फक्कड़ मिज़ाज अनपढ़ कवि सिन्टु तिवारी #हकिकत जमीन कि