तुमने पुकारा नहीं,जिद्द में हम भी रहे फासले दरमियां हमारे यूं ही बढ़ते रहे तुमने कहा ही नहीं, ना मैंने सुना कभी किस्से मन ही मन यूं ही बस गढ़ते रहे काश मुड़ के देख लिया होता एक बार औरों के पढ़ाए पाठ क्यों हम पढ़ते रहे थम सी गई है हर बात तेरे जाने के बाद कहने को शोहरत की सीढियां चढ़ते रहे हर रात अब तो है अमावस की रात मेरी फिर ना जाने क्यों चांद को हम ढूंढते रहे तुमने पुकारा नहीं,जिद्द में हम भी रहे फासले दरमियां हमारे यूं ही बढ़ते रहे तुमने कहा ही नहीं,ना मैंने सुना कभी किस्से मन ही मन बस यूं ही गढ़ते रहे काश मुड़ के देख लिया होता एक बार औरों के पढ़ाए पाठ क्यों हम पढ़ते रहे