"जलियांवाला बाग हत्याकांड" (Part-1) उस रोज बहुत गोलियां चली हमारे सीने पर। हाथ-पैरों को बांधकर, बंदिशें लगी थी जीने पर।। रक्त पात, गोली का शोर, बस चारों पसरा गम था। पत्नी के कंधे लाश पति की, जड़-चेतन में मातम था।। इंक़लाब का ऊँचा स्वर, इस घटना पर भी दबा नहीं। भारत माँ का जयकारा, अंग्रेजी बंदूकों से डरा नहीं।। लाशें बच्चे और बूढ़ों की, टूटे सपनों सी बिखरी थीं। आज़ादी की बलिवेदी, पर आज खून की बूँदें उभरी थी।। "जलियांवाला बाग हत्याकांड" (Part-1) उस रोज बहुत गोलियां चली हमारे सीने पर। हाथ-पैरों को बांधकर, बंदिशें लगी थी जीने पर।। रक्त पात, गोली का शोर, बस चारों पसरा गम था। पत्नी के कंधे लाश पति की, जड़-चेतन में मातम था।।