अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा ! हाय कैसा मैं ये जुर्म संगीन कर बैठा। अपनो से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा। आसमाँ को छूती खुशियां जमीन कर बैठा। है कैसा ये जुर्म संगीन कर बैठ। अंधेरे में छिपे उन दागी चेहरों को मैं हसीन कर बैठा। हाय कैसा मैं ये जुर्म संगीन कर बैठा।