ख़्वाब आंखों में मिरे अश्क बहाने आए, जब भी आए वो मिरा दिल ही दुखाने आए। आज फिर दिल पे चले लफ़्ज़ के नश्तर कितने ! आज फिर याद हमें ज़ख़्म पुराने आए। दिल के पनघट पे ठहरता नहीं कोई आकर, लोग आए तो मगर प्यास बुझाने आए। ख़ुद से रुठा हूं मैं अब छोड़ दो तन्हा मुझको, उससे कह दो वो मुझे अब न मनाने आए। मैं किसी राह पे पत्थर सा पड़ा हूं जैसे! पास जो आए वो ठोकर ही लगाने आए। मुझको तन्हाई में चुपचाप रुलाने वाले, बज़्मे-आख़िर में मुझे खुलके हंसाने आए। यूं चले आते हैं मय्यत पे ये दुनिया वाले, जैसे एहसान कोई दिल पे जताने आए! #yqaliem #khwaab #ashq #thokar #Bazm_e_aakhir #log #tanhai #pyas बज़्मे-आख़िर - Last assembly, आख़िरी महफ़िल