चांद भी मुस्कराने लगा है, चांदनी फैलने अब लगी है रूप की ताजगी से भरी, रातरानी फिर महकने लगी है। दृश्य अदभुत बिखेरा चमन ने याद में तेरे खोई हुई हूँ आ जाओ सनम बिन तुम्हारे बहारें भी चुभने लगी है। रातरानी फिर महकने लगी है। उलझने अब सुलझती नहीं कैसे सुलझाऊँगी मैं अकेली साथ जब से तुम्हारा मिला खुद-ब-खुद सुलझने लगी हैं। रातरानी फिर महकने लगी है। -: लक्ष्मीनरेश :- #चंचलमन #शुभरात्रि