#शहर की इस दौड़ में दौड़के करना क्या है, अगर यही जीना है दोस्तों ,तो फिर मरना क्या है...पहले #बारिश में ट्रेन लेट होने के फिक्र है... भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है... सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम पर मां का हाल पुछने की फुर्सत कहां हैं... अब रेत पर नंगे पांव टहलते क्यूं नहीं... 108 हैं चैनल पर दिल बहलते क्यूं नहीं... इंटरनेट पर दुनिया से तो टच में है... लेकिन पड़ोस में कौन रहता है... जानते तक नहीं...#मोबाईल लैंडलाइन सबकी भरमार है, लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहां है? कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है... कब जाना था शाम का गुजरना क्या है... दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़के करना क्या है... अगर यही जीना है...तो फिर मरना क्या है... ©Badhsha Azan #Phone