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अंतर्द्वंद्व थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त (डर) #अंतर

अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त
(डर) #अंतर्द्वंद्व३ 
#अनाम_अंतर्द्वंद्व

कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं पर कभी-कभी लगता है कि यह रिश्ते बनाना ज़रूरी है क्या ?कभी  अपने बनाए हुए रिश्तों से उम्मीद करना अपेक्षाएँ  रखना और मन मुताबिक व्यवहार ना पाने पर बार-बार उन्हीं  बातों को सोचना और खुद को कष्ट देना...क्या जीवन भर हम सब से यही करते रहते हैं।रिश्ते बनाओ उन्हें सींचों और कभी कभी ख़राब पुष्प की तरह उन्हें निकाल कर फेंक दो। सारी उमर  यही सब करने में बीत जाती हैं। ख़ुद के लिए तो जैसे कभी समय ही नहीं मिलता। 


आजकल लोगों की इस भीड़ से ही मुझे डर लगने लगा है इसलिए नहीं भीड़ मुझे नुक़सान पहुँचा सकती हैं, इसलिए कि बात करने में  शायद जी नहीं लगता, दूर  फेंकना चाहती हूँ,   सारे ख़राब पुष्पों को ताकि उनकी  दुर्गंध से जी ना मचले । एक अजीब सा डर लगता है खुद की भावनाएँ बताने में कि कहीं कोई उनका मज़ाक ना बना दे। अपने हृदय के भावों को मज़ाक बनता देख बहुत कष्ट होगा मुझे। इसलिए मौन ही अपना साथी लगता है  यह कहते हैं ना कि कुछ भी मन में दबाकर नहीं रखना चाहिए ,सब खुलकर व्यक्त कर देना चाहिए। मगर जो डर अपनी भावनाओं के उपहास का मन में है उसे मेरी अभिव्यक्ति स्वीकार्य नहीं।  और मैं फिर चली जाती हूँ एक अंतर्द्वंद में कुछ कहने और ना कहने की स्थिति में।
अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त
(डर) #अंतर्द्वंद्व३ 
#अनाम_अंतर्द्वंद्व

कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं पर कभी-कभी लगता है कि यह रिश्ते बनाना ज़रूरी है क्या ?कभी  अपने बनाए हुए रिश्तों से उम्मीद करना अपेक्षाएँ  रखना और मन मुताबिक व्यवहार ना पाने पर बार-बार उन्हीं  बातों को सोचना और खुद को कष्ट देना...क्या जीवन भर हम सब से यही करते रहते हैं।रिश्ते बनाओ उन्हें सींचों और कभी कभी ख़राब पुष्प की तरह उन्हें निकाल कर फेंक दो। सारी उमर  यही सब करने में बीत जाती हैं। ख़ुद के लिए तो जैसे कभी समय ही नहीं मिलता। 


आजकल लोगों की इस भीड़ से ही मुझे डर लगने लगा है इसलिए नहीं भीड़ मुझे नुक़सान पहुँचा सकती हैं, इसलिए कि बात करने में  शायद जी नहीं लगता, दूर  फेंकना चाहती हूँ,   सारे ख़राब पुष्पों को ताकि उनकी  दुर्गंध से जी ना मचले । एक अजीब सा डर लगता है खुद की भावनाएँ बताने में कि कहीं कोई उनका मज़ाक ना बना दे। अपने हृदय के भावों को मज़ाक बनता देख बहुत कष्ट होगा मुझे। इसलिए मौन ही अपना साथी लगता है  यह कहते हैं ना कि कुछ भी मन में दबाकर नहीं रखना चाहिए ,सब खुलकर व्यक्त कर देना चाहिए। मगर जो डर अपनी भावनाओं के उपहास का मन में है उसे मेरी अभिव्यक्ति स्वीकार्य नहीं।  और मैं फिर चली जाती हूँ एक अंतर्द्वंद में कुछ कहने और ना कहने की स्थिति में।

#अंतर्द्वंद्व३ #अनाम_अंतर्द्वंद्व कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं पर कभी-कभी लगता है कि यह रिश्ते बनाना ज़रूरी है क्या ?कभी अपने बनाए हुए रिश्तों से उम्मीद करना अपेक्षाएँ रखना और मन मुताबिक व्यवहार ना पाने पर बार-बार उन्हीं बातों को सोचना और खुद को कष्ट देना...क्या जीवन भर हम सब से यही करते रहते हैं।रिश्ते बनाओ उन्हें सींचों और कभी कभी ख़राब पुष्प की तरह उन्हें निकाल कर फेंक दो। सारी उमर यही सब करने में बीत जाती हैं। ख़ुद के लिए तो जैसे कभी समय ही नहीं मिलता। आजकल लोगों की इस भीड़ से ही मुझे डर लगने लगा है इसलिए नहीं भीड़ मुझे नुक़सान पहुँचा सकती हैं, इसलिए कि बात करने में शायद जी नहीं लगता, दूर फेंकना चाहती हूँ, सारे ख़राब पुष्पों को ताकि उनकी दुर्गंध से जी ना मचले । एक अजीब सा डर लगता है खुद की भावनाएँ बताने में कि कहीं कोई उनका मज़ाक ना बना दे। अपने हृदय के भावों को मज़ाक बनता देख बहुत कष्ट होगा मुझे। इसलिए मौन ही अपना साथी लगता है यह कहते हैं ना कि कुछ भी मन में दबाकर नहीं रखना चाहिए ,सब खुलकर व्यक्त कर देना चाहिए। मगर जो डर अपनी भावनाओं के उपहास का मन में है उसे मेरी अभिव्यक्ति स्वीकार्य नहीं। और मैं फिर चली जाती हूँ एक अंतर्द्वंद में कुछ कहने और ना कहने की स्थिति में। #अनाम_ख़्याल #pc_byअनाम