यूँ ना बनाओ पुर्जे खतों के मेरे लिए ये प्रेम-ग्रंथ हैं.. तुमको पाने की तरकीबें इनमें जीतने के कुछ षड्यंत्र हैं तुम पर है जो न्यौछावर उस प्रेम के कई अंग हैं.. तुम जानो ना हाल प्रियसी यादों के खंजर जब चुभते हैं टुकड़ा-टुकड़ा हो जाता हूँ खाक मंजर सब चुभते हैं.. ये कुछ कागज के पन्ने जिनमें अब तुम रहती हो यही तो मेरा आसरा हैं मेरी छत हैं मेरे जीवन के स्तंभ हैं.. -KaushalAlmora लिखते हुए तुम्हें कुछ पन्ने जो भीग जाते हैं अक्सर संभाले हैं वो मैंने सब गेंद बनाकर कभी खेल लेना इनसे भी तुम तुम्हें कुछ अच्छा लगेगा इजहार-ए-मोहब्बत का ये तरीका शायद तुम्हें सच्चा लगेगा.. जज्बातों से लड़ना और तुम्हें याद करना