read👉caption सामान्य भाषा में कहें तो जीवात्मा अर्थात प्राणी के जीवन के अंत को मृत्यु कहते हैं...हमारे शास्त्रो में मुख्यतया मृत्यु के 101 स्वरूप बताए गए हैं, लेकिन मुख्य 8 प्रकार की होती है...जिसमे बुढ़ापा, रोग, दुर्घटना, अकस्मती आघात, शोक, चिंता, और लालच मृत्यु के मुख्य रूप है...!
मृत्यु अटल सत्य है जिसे कोई नहीं बदल सकता...किन्तु आत्मा की मृत्यु कभी नहीं होती...मृत्यु तो बस इस नश्वर शरीर की होती है...फिर भी मनुष्य मौत का नाम सुनते ही भयभीत हो जाता है...ये जानते हुए कि इस धरती पर जन्म लेने वाला हर एक प्राणी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जिसने भी जन्म लिया है,उसकी मृत्यु निश्चित है...सिर्फ सजीव वस्तुएँ ही नहीं अपितु निर्जीव वस्तुओं का भी अंत होता है...सजीव के साथ-साथ निर्जीव को भी इस मिट्टी में मिल जाना है..!
जिस तरह मनुष्य अपने पुराने वस्त्र खराब होने पर नये वस्त्र धारण करता है, ठीक उसी तरह आत्मा भी पुराने शरीर खराब होने पर नये शरीर को धारण करती है..!
फिर मृत्यु से डर कैसा?
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