क्या मिलता है इंसाफ़ किसी को या होता है इसका भी व्यापार दोषी खुले घूमते हैं डरे बिना निर्दोष की नहीं सुनता कोई हाहाकार सब पैसों का खेल है भाई बिकता है खुलेआम सबका ईमान पैसों को देख चमक जाती हैं आँखें