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इश्क के सच्चे बहुत हैं, हुस्न के चर्चे बहुत हैं।

इश्क के सच्चे बहुत हैं, हुस्न के चर्चे बहुत हैं। 
तुम भी देख लो जरा, इतने खर्चे बहुत हैं।
प्यार करो तो किसी एक से करो,
हो सके तो किसी नेक से करो।
जब तक न मिले सच्चा साथी,
तुम कम-से-कम पढ़ाई तो हरेक से करो
दिन में ये सितारे अच्छे नहीं लगते,
और दुनिया के अब नजारे भी अच्छे नहीं लगते।
कोई तो जाके कह दे हमारे माता-पिता से,
अब हम कुँआरे अच्छे नहीं लगते।

©Rakshit Raj
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Rakshit Raj

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