जान से अनजान बनने का मंज़र देखा मैंने बहोत बार पर इस बार का मंज़र कुछ और होगा। मुझ पर तोहमत लगेगा मैं ख़ामोशी से सुनूंगी मेरी मोहब्बत-ऐ-बयान का अंदाज़ कुछ और होगा। गम नही मुझे कि मैं ऊँची आवाज़ तले दब गई मैं कुछ नही कहूँगी मेरा अंदाज़-ऐ-बयान कुछ और होगा। मैं ख़ाक भी हो जायूँ और असर फिर भी कोई न हो जब खलेगी कमी तो सन्नाटा कुछ और होगा। मेरी आवाज़ से खामोशी का सफर तय कर पाओ तो चलना फिर देखना मंज़र कुछ और होगा। जान से अनजान बनने का मंज़र देखा मैंने बहोत बार पर इस बार का मंज़र कुछ और होगा। मुझ पर तोहमत लगेगा मैं ख़ामोशी से सुनूंगी मेरी मोहब्बत-ऐ-बयान का अंदाज़