हर बार सोचकर कई बातें, बस यूँही मैं रह जाता हूँ, मुझे कुछ कहना है उससे, पर कुछ कह नहीं मैं पाता हूँ । कितना लगाव है मुझे उससे, ये उससे ही भला क्यूं मैं छुपाता हूँ, पल-पल करता हूं,कमी जिसकी महसूस, ये क्यों नहीं उसे मैं बताता हूँ । अपनी लेखनी में जिक्र उसका, बड़े चाव से मैं लाता हूँ, बस, कई बातें दिल की अपनी, इसी राह उसे पहुंचाता हूं । हर लिखे छंद में मेरे, मैं उसको ही गुनगुनाता हूँ, हर अल्फ़ाज़ से उसकी तारीफ़, दिल से अपने मैं सुनाता हूँ । मैं उसे कितना चाहता हूँ, पर उसे क्यूं नहीं सब बतलाता हूँ । बुरा न लग जाए उसको कहीं, अपने मन से, दिल को बार-बार मैं डराता हूँ, मुझे कुछ कहना तो है उससे, पर इसीलिए मैं उसे कुछ नहीं बताता हूँ ।। विशाल प्रेम कह नही मैं पाता हूँ ।।