हर व्यक्ति हर कार्य नहीं कर सकता। फूल में सुगंध है, फैला नहीं सकता। हवा माध्यम बनती है। पूरे वातावरण में सुगंध व्याप्त हो जाती है। सभी साधन, सुविधाएं हमारे माध्यम हैं। लेकिन भौतिक माध्यमों का मूल्य अघिक नहीं होता। जीवन को सार्थकता देने वाले माध्यम सर्वोपरि होते हैं। इनमें मां और गुरू सबसे महत्वपूर्ण हैं। मां जीवन का स्वरूप निर्माण करती है। गुरू गति प्रदान करता है। : आज मां केवल बाहरी जीवन का निर्माण कर रही है। इसीलिए बच्चे बडे होकर दूर चले जाते हैं। मां को अकेले ही बुढापा काटना पडता है। गुुरू भीतर के विश्व से परिचय कराता है। स्वयं का स्वयं से परिचय कराता है। तभी जीवन सार्थक सिद्ध हो पाता है। इसके बिना जीवन में समष्टि भाव ही जाग्रत नहीं होता। अपने हित के आगे कोई देखना ही नहीं चाहता।