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मैं अकेला , मैं तन्हां , मैं किस से पूछूँ कि मैं क

मैं अकेला , मैं तन्हां , मैं किस से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ |
इन चलते शहरों में , अक्सर मकां सुनसान हुआ करतें हैं |
इन दिवारों से या फिर इन खिडकी दरवाजों से 
मैं किस से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ |
यकीं नहीं होता है अब खुद पर 
क्या मैं खुद से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ | #MyFirstPoem
मैं अकेला , मैं तन्हां , मैं किस से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ |
इन चलते शहरों में , अक्सर मकां सुनसान हुआ करतें हैं |
इन दिवारों से या फिर इन खिडकी दरवाजों से 
मैं किस से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ |
यकीं नहीं होता है अब खुद पर 
क्या मैं खुद से पूछूँ कि मैं किस काबिल हूँ | #MyFirstPoem