अपने पिता की अस्थियां बीनते हुए युवक के कानों में एक रूखी आवाज आती है! अस्थि छूटी तो तुमसे भरपाई होगी! युवक ने आस-पास देखा, स्वर आया, माता को नाश्ता मिला! अगर दिन के पहले पहर वो भूखी दिखी तो तुमपर कारवाई होगी! माँ! वो युवक दुहराता है। तुम्हारे घर में रहने वाली कुंवारी युवती, जो-जो लेकर सहमति दे, उसे मिले, पर वो सड़क पर असहाय अकेली न दिखे, हाँ, ध्यान रखना कि कहीं भी कोई कमी अगर मिली तो तुम्हारी घिसाई होगी! लेकिन आधी पहले ही छाँट लो उसके लिए जिसकी बिस्तर की बेचारगी से बाज़ार की आवारगी तक जिससे तुम्हारी एक क्षण भी निभाई होगी। वो युवक जड़ रह गया। आज भरोसा है कि कालकोठरी नहीं, कानून ही सबसे बड़ी जेल बन गयी है, जो एतिहादतन भलों को भी दी जाती है! ये वो नैतिक, चारित्रिक, मर्यादा व मूल्य न रहे जो राम को राम बनाती है। इसकी नजर में हर आदमी अपराधी या संभावित अपराधी होता है। लोग कहते हैं कि आज़ादी मिली, पर ये जाल बंधनों से भी बड़ा बंधन होता है! कर्तव्य अब कानून के नाम से चालू हैं, कि हम इंसान कम, ज्यादा सर्कस के भालू हैं। सजा मिलेगी