ज़िम्मेदारियों का बोझ उन्हें उठाना न आया। मोहब्बत भी ढंग से उन्हें निभाना न आया। हम ढूंढते रह गए उनकी नज़रों में वो प्यार। अफ़सोस वो प्यार भी उन्हें जताना न आया। इस दिल-ए-नादां को उन्हें समझाना न आया। लफ़्ज़ों में प्यार अपना उन्हें जताना न आया। हम ताकते रह गए उनकी राह सारी उम्र भर। अफ़सोस वो चाहत भी उन्हें दिखाना न आया। ♥️ Challenge-801 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।