दुनिया का यही हिसाब है,जो हुआ नहीं वो ही हो रहा जो सरल है वो गुनहगार है किनारे खड़ा सच रो रहा बंद मुट्ठी से यूं फिसल गई,किस्मत लिखी या लिखी हवा शायद हथेली में कोई सुराख है,क्यूं कुबूल होती नहीं मेरी दुआ आईने को अब तोड़ दो और क्या दूं मैं मशविरा दिल में कोई ज़ख्म है आधा भर गया,आधा है हरा माँगी थी तुझसे पनाह मालिक,मेरे हिस्से में धूप लिख गई जो टूटा था वो जुड़ा नहीं है,एक उम्मीद पे ज़िदंगी गुज़र गई मुफ़्त में सीखा नहीं है,ज़िदंगी का हमने फलसफा कुछ कर्ज़ हमने उतार दिया है,कुछ रह गया है सिर पे चढ़ा... © abhishek trehan ♥️ Challenge-684 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।