दिसंबर का महीना निशब्द शायद उसने मन से आवाज से कितनी बार बुलाई होगी हर एक को और हर ईश्वर को लेकिन कोई नहीं आया क्या और शब्द रखुं मैं उस ईश्वर को मानने का निशब्द हूं मैं अभी हर दिन मिनटों में हो रहे हैं ये कल सेकिंडों में होंगे फिर भी कोई नहीं आएगा वो तस्वीरें वो जली हुई उनकी तस्वीर मुझे ,,,,, निशब्द कर गई हैं कि इंसान आज किस स्थिति में है पता नहीं कब समझ आएगा उनको कि इंसान को इंसान बनना पड़ता हैं क्योंकि जानवर जानवर बनकर पैदा होते हैं लेकिन इंसान को इंसान बनना पड़ता है फिर भी निशब्द हूँ याद यह कर सोच कर कि अभी कितने बाकी हैं ऐसी घटनाओं से जुझने के लिए पता नहीं और कितनों के साथ ऐसा होगा पता नहीं ......???? शायद सैंकड़ों होंगे हजारों होंगे क्या और बाकी हैं अभी क्या ये खत्म होगा कभी?? सिर्फ मैं निशब्द हूँ अभी निशब्द,, ,,,,,,,,,, ,, ,,डेविड,, निशब्द शायद उसने मन से आवाज से कितनी बार बुलाई होगी हर एक को और हर ईश्वर को