कोई कसर क्या रह गई थी ज़िंदगी बिताने को कमबख्त फिर आ गया घरों में ताले लगाने को . अवाम खड़ी सड़कों पे लेके इंतेजामों पे आईना बाक़ी क्या रह गया दुनिया का हाल बताने को . मुआमला मर्ज का है तो ये भी जरा ताकीद रहे मनाही सख़्त है कोई अहलो अयाल दिखाने को . मरासिम देखे हमने भी दर्द के दर्द से यहाँ बहुत हैं सबके अपने अपने ज़ख़्म हैं यहां तुम्हें दिखाने को . दरबदर दुनिया भी डरी छिपी दबी मुसकाती है हैं बर्बाद मंज़र कई औ बेवकूफ़ियाँ छुपाने को . मुगालते कितने पाल बैठा है धीर किसी उम्मीद में देख कि इक मर्ज बहुत ये सारी दुनिया मिटाने को कसर