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**** एक लेखनी का प्रकाश **** एक लेखनी का प्रकाश स

 **** एक लेखनी का प्रकाश ****
एक लेखनी का प्रकाश समस्त पृथ्वी पर समस्त संसार के ,
धर्मों के समस्त परमत्तत्व अंशों के लिए वह दर्पण होता हैं ।
 जो अपने शरीर में आंखों की दृष्टि ना होते हुए भी ।
 आईने में अपने चेहरे की खुबसूरती को दिखा देता है। 
 और आंखों में बिल्कुल रोशनी ना होते हुए भी हुएं भी ।
 एक दिन तो उनकी आंखों की रोशनी से तो 
समस्त संसार को भी प्रकाशित कर देता है।
और उन्ही की आंखों से ।
 समस्त पृथ्वी पर समस्त संसार के समस्त
 परमत्तव अंशों अभी भी देख सकते हो आप। 
  इस प्रमाण आज भी जीवित हैं इतिहास में।
   इस संसारसे सदीयों वर्षों के उनके जाने के बाद भी। 
   जैसे कि - कवि सुरदास जी अपने जीवन में 
जन्म से दृष्टि  ना होते हुए भी ।
   उनकी दृष्टि का प्रकाश समस्त पृथ्वी पर 
आज भी  संजीवता संजोएं रखी है ।
   समस्त प्राणियों की व हमारी प्रकृति ने अपनी
 गोद में आज भी जीवित हैं।
 और उनकी आंखों के तेज ज्ञान कराती हर पल हमें ।
निरंतर समस्त पृथ्वी के परमत्तव अंशों को।
   हे समस्त पृथ्वी पर समस्त धर्मों के परमत्तव अंशों
   आपके पास अनमोल दृष्टि हैं। हे परमत्तव अंश आप
 अपनी आंखों तेज को लेखनी रुपी दर्पण को दान करके जाएं
 उस लेखनी को लिखे हुए को भी हमारी प्रकृति आपको भी 
 अपनी गोद में सोने अहसास दिलाएं ।
आपके जाने के बाद इस समस्त संसार में।

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