खरीदा अपनी कमाई से खिलौना फिर से बनाई वो कागज़ की कश्ती फिर से।। बना कर देखा मिट्टी का घर फिर से खेला लंगोटिया दोस्तों संग फिर से।। ज़िन्दगी फिर भी ना मुस्कुराई बचपन की तरह छूट गया पीछे कहीं अपना बचपन का सहर।। दिल आज भी ढूंँढता है उन गलियों को आँखें इंतज़ार करती उस बीते बचपन को।। क्यों आ गए जवानी के दलदल में कितना प्यारा था मासूमियत वाला बचपन।। वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गई मासूमियत बचपन की ना जाने कहांँ छूट गई।। ♥️ Challenge-752 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ Happy Children's Day :) ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।