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यह कुआं कविता आज की हमारी गैप जनरेशन को दर्शाती ह

यह कुआं कविता आज की 
हमारी गैप जनरेशन को दर्शाती है


Read in caption मैं हूं इस गांव का बूढ़ा कुआं
बहुत साल से बेकार ही पडा हूँ
कभी गिराए जाते थे 
मुझमें भी बर्तन के ढेर
छपाक सी आवाज आती थी
मकीन(मकान) में रहने वाले लोगों की शोराशीयां(शोर) 
बच्चों की हंसी किलकारियां
रस्सी के साथ-साथ चेहरे पर खुशियां छलकती थी
यह कुआं कविता आज की 
हमारी गैप जनरेशन को दर्शाती है


Read in caption मैं हूं इस गांव का बूढ़ा कुआं
बहुत साल से बेकार ही पडा हूँ
कभी गिराए जाते थे 
मुझमें भी बर्तन के ढेर
छपाक सी आवाज आती थी
मकीन(मकान) में रहने वाले लोगों की शोराशीयां(शोर) 
बच्चों की हंसी किलकारियां
रस्सी के साथ-साथ चेहरे पर खुशियां छलकती थी
jazbatilawanda1588

Gaurav (JL)

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