नमन मित्रो रात की चाँदनी और ये बेचैन मन, सहम सहम सा है जाने क्यों तन बदन।। ऋतु आती रही ऋतु जाती रही, पुष्प है अधखिले जाने क्यों महका चमन।। रूप तेरा कमल तू खिले है सम्भल, दिल में बसती हो जाने क्यों राधा रमन।। कस्तियां जैसे धड़कनो में तैरती हो कई, खो सा गया है जाने क्यों चैनो अमन।। मुकेश चौधरी,, दीप 01/09/2016 नमन