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वोह भी कैसी न-मुराद आग थी ना इधर बुझा सका, ना उधर

वोह भी कैसी न-मुराद आग थी 
ना इधर बुझा सका, ना उधर लगा सका 

उसने खैंच दी ख़ाल मेरे जिस्म की 
ना क़फ़न बना सका, ना आँचल बना सका..!!


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वोह भी कैसी न-मुराद आग थी 
ना इधर बुझा सका, ना उधर लगा सका 

उसने खैंच दी ख़ाल मेरे जिस्म की 
ना क़फ़न बना सका, ना आँचल बना सका..!!


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