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क़िस्मत हमें, हम क़िस्मत को आज़माते हैं, मुसीबतों को

क़िस्मत हमें, हम क़िस्मत को आज़माते हैं,
मुसीबतों को ढूंढ ढूंढकर जा टकराते हैं,
नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं,
उन्हें देख कर हम बस मुस्कुराते हैं।
सफ़र ग़र आसां हुआ तो ख़ाक मज़ा है यारों,
आसानी से मिली मंज़िल तो ख़ता है प्यारो,
तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं,
आसमां से टूटकर ही सितारें झिलमिलाते हैं।
रविकुमार... क़िस्मत हमें, हम क़िस्मत को आज़माते हैं,
मुसीबतों को ढूंढ ढूंढकर जा टकराते हैं,
नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं,
उन्हें देख कर हम बस मुस्कुराते हैं।
सफ़र ग़र आसां हुआ तो ख़ाक मज़ा है यारों,
आसानी से मिली मंज़िल तो ख़ता है प्यारो,
तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं,
आसमां से टूटकर ही सितारें झिलमिलाते हैं।
क़िस्मत हमें, हम क़िस्मत को आज़माते हैं,
मुसीबतों को ढूंढ ढूंढकर जा टकराते हैं,
नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं,
उन्हें देख कर हम बस मुस्कुराते हैं।
सफ़र ग़र आसां हुआ तो ख़ाक मज़ा है यारों,
आसानी से मिली मंज़िल तो ख़ता है प्यारो,
तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं,
आसमां से टूटकर ही सितारें झिलमिलाते हैं।
रविकुमार... क़िस्मत हमें, हम क़िस्मत को आज़माते हैं,
मुसीबतों को ढूंढ ढूंढकर जा टकराते हैं,
नासमझ हैं वो काँटे जो हमारी राह में बिछे हैं,
उन्हें देख कर हम बस मुस्कुराते हैं।
सफ़र ग़र आसां हुआ तो ख़ाक मज़ा है यारों,
आसानी से मिली मंज़िल तो ख़ता है प्यारो,
तो क्या फ़लक तक जो पहुँच वो टूट जाते हैं,
आसमां से टूटकर ही सितारें झिलमिलाते हैं।