छवि सोहती है मिथिलेश की हमारी और, मन मोहती है छवि करुनानिधान की। प्रेम को प्रणाम सिया राम ने किया है आज, प्रेम की ही विधियां हैं विधि के विधान की। प्रेम से ही मेरे राम राम हो सके हैं और, प्रेम से ही जान हो सकी है जान जान की। माता जानकी ने वर लिए मेरे राघवेंद्र, मेरे राघवेंद्र ने वरीं हैं माता जानकी। छवि सोहती है मिथिलेश की हमारी और, मन मोहती है छवि करुनानिधान की। प्रेम को प्रणाम सिया राम ने किया है आज, प्रेम की ही विधियां हैं विधि के विधान की। प्रेम से ही मेरे राम राम हो सके हैं और, प्रेम से ही जान हो सकी है जान जान की। माता जानकी ने वर लिए मेरे राघवेंद्र, मेरे राघवेंद्र ने वरीं हैं माता जानकी।