शुक्र है खुदा का कि अंतरात्मा की चीखें बेआवाज़ हैं वर्ना उनके शोर में कोई जी नही पाता शुक्र है खुदा का कि आत्मा का दर्द आंखों से छलकता है वर्ना बहरों के शोर में कोई समझ नही पाता शुक्र है खुदा का कि तुम हो साथ मेरे जैसे भी जितने भी इंसानो के होने का वरना यकीन नही कर पाता शुक्र है खुदा का कि दीवारें मोटी हैं घरों की चारदीवारों मे बंद चीखें कोई सुन नहीं पाता शुक्र है खुदा का नाखून दिए है मुझको, नोंच डालूं इस मन को लहू ही बह ले, गर कुछ कह या कर नही पाता शुक्र है खुदा का अनजान है सभी दर्द की गहराइयों से अनजान है सभी दर्द की सचाइयों से के मासूमों के दर्द समझ, कोई मुस्का नहीं पाता शुक्र है खुदा का अंधे बहरों की दुनिया है शुक्र अदा करते हम कितने नाशुक्रे हैं जायज़ अच्छा सब संभव है, बस कोई कर नही पाता Shukra hai khuda ka K antaratma ki cheekhein beawaz hain Verna itne shor mey koi ji nahi pata Shukra hai khuda ka Antaratma ka dard ankho se chalakta hai Behron k shor mey verna koi samajh nahi pata