Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जो उड़ गए परिंदे उनका क्या मलाल करूं। आज कई तो कई पड़ोसियों की छातों पर चुगतें फिरते है। उड़ान सीखने वाले। ख़ुदा से रहमत की गुज़ारिश ही करते है। बचपन से जवानीं को महफूज़ रखने वाले क़ातिल कैसे हो सकते है। गुस्ताखियां नहीं की।बदसलूकी थी। काबिंल बन काफिर हुए। चार बीज़ क्या बो दिए। रहिसिंयत का घमंड आ गया। एक वो वक़्त भी था।उसी ज़मीन को बेचा गया। परवरिशं की खातिंर।आज तुम पहचाने से डरते हो। बालों में चांदी क्या बिखरी।बेजांर हो गए तुम। घर की दहलीज क्या लांगी।बेपरवाह हुए तुम। कुसूंर समाज का नहीं मातृत्व का हो गया। वासु देव कटंबकुम मूल संस्कार और उसपर उनकी विचारधारा बदलने वाले ख़ुद ही अपराधी होते है। संस्कार चाहे मूलमंत्र है । जो बचपन से जवानी को दस्तक देता है। गुरूंर का परिधान पहने बढ़पन् दिखते नज़र आते है। कमाल तो तब हुआ। जब अपने सपनों को उड़ान बच्चो को दिलाते हो। और पंख फैलातें ही वो अपनों को पहचान ने कतराते हो। #cinemagraph #quote #feelings #respect #yqbaba #yqdidi Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat जो उड़ गए परिंदे उनका क्या मलाल करूं। आज कई तो कई पड़ोसियों की छातों पर चुगतें फिरते है। उड़ान सीखने वाले। ख़ुदा से रहमत की गुज़ारिश ही करते है। बचपन से जवानीं को महफूज़ रखने वाले क़ातिल कैसे हो सकते है।