पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए... शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका जन्नत के धनी "पैर" कभी सहला न सका दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं "निकम्मा"कभी एक ग्लास पानी पिला न सका बुढापे का "सहारा" हूँ 'अहसास' दिला न सका पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल पर सुला न सका वो ''भूखी''सो गई 'बहू' के डर से एक बार मांगकर मैं "सुकुन" के दो निवाले उसे खिला न सका नजरें उन बुढी "आंखों" से कभी मिला न सका वो ''दर्द'' सहती रही मैं खटिया पर तिलमिला न सका जो हर "रोज़" ममता के रंग पहनाती रही मुझे उसे "दीवाली" पर दो जोड़े कपड़े सिला न सका बिमार बिस्तर से उसे ''शिफा''दिला न सका खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल ले जा न सका माँ के बेटा कहकर ''दम'' तौड़ने के बाद से अब तक सोच रहा हूँ ''दवाई'' इतनी भी महंगी न थी के मैं ला ना सका माँ 👍👏👍👌✌❓😒😢 maa ke liye kamyab bane #allalone