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यज्ञ अर्थात कर्मणोहयत्र लोकोहयंग कर्मबंधनः अर्था

यज्ञ अर्थात कर्मणोहयत्र लोकोहयंग कर्मबंधनः 

अर्थात् कर्म कौन्तेय मुक्तसंग: 

  विष्णु के प्रेम को पूरा करने के लिए कर्म करना चाहिए;  अन्यथा कर्म इस भौतिक जगत में आसक्ति का कारण है।  अत: हे कौन्तेय!  केवल भगवान की प्रसन्नता के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करें और इस प्रकार आप हमेशा बंधन से मुक्त रहेंगे।

©Arup Das
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