कुछ चीज़ें ऐसे बदल जाते हैं ;जैसे मौसम, कुछ बातें ऐसे कर लेते हैं; जैसे ही बहुत आम। पहले मुस्कराने का वजह पता न था, आज लफ्ज़ न मिलने पर हँसना पड़ता है। पहले नोक झोंक भी हो जाया करता था, अब सिर्फ जज्बात-ए-इज़हार रोकना पड़ता है।। #जज्बाती_अल्फाज़