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उनकी याद चल रहा हूँ समंदर किनारे, भीगी रेत में,

उनकी याद   चल रहा हूँ समंदर किनारे, भीगी रेत में, 
और पलटकर देखता भी जा रहा हूँ
पैरों के बने नक्शों को...
बहुत दूर चला आया हूँ किसी सोच में डूबा हुआ,
अब रेत पर इन नक्शों की एक लम्बी सी 
लक़ीर बन गई है। 

मैं आंखें बंद कर लेता हूँ,
और सब कुछ रिवाइंड 
होता चला जा रहा है.....  
....
.
.
(Read full poem in caption below👇)

©Yamit Punetha [Zaif] उनकी याद


चल रहा हूँ समंदर किनारे, भीगी रेत में, 
और पलटकर देखता भी जा रहा हूँ
पैरों के बने नक्शों को...
बहुत दूर चला आया हूँ किसी सोच में डूबा हुआ,
अब रेत पर इन नक्शों की एक लम्बी सी
उनकी याद   चल रहा हूँ समंदर किनारे, भीगी रेत में, 
और पलटकर देखता भी जा रहा हूँ
पैरों के बने नक्शों को...
बहुत दूर चला आया हूँ किसी सोच में डूबा हुआ,
अब रेत पर इन नक्शों की एक लम्बी सी 
लक़ीर बन गई है। 

मैं आंखें बंद कर लेता हूँ,
और सब कुछ रिवाइंड 
होता चला जा रहा है.....  
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(Read full poem in caption below👇)

©Yamit Punetha [Zaif] उनकी याद


चल रहा हूँ समंदर किनारे, भीगी रेत में, 
और पलटकर देखता भी जा रहा हूँ
पैरों के बने नक्शों को...
बहुत दूर चला आया हूँ किसी सोच में डूबा हुआ,
अब रेत पर इन नक्शों की एक लम्बी सी
yamitpunethazaif3604

Zᴀɪꜰ

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