जिंदगी गुजर गई जिंदगी तेरी रंगदारी में, सब कुछ दे कर बैठे हैं मौत को मालगुजारी में। वो ओढ कर आसमां जो सो गया, तारो ने रात गुजार दी पहरेदारी में। चांद भी तो निकला नहीं उस रात, शक तो जायज है उसकी भी वफादारी में। नन्हें हाथों से लकीरें मिट चुकीं बचपन छूट गया उसका जिम्मेदारी में सांझ घर लौटता हूं तो नजरे मिला नहीं पाता, भला क्या रखा है ऐसी खुद्दारी में। जिंदगी भर साथ ना मिला जिनका 'तरूण' जिंदगी गुजार दी उन रिश्तों की बेलदारी में। #जिंदगी #जद्दोजहद #जिम्मेदारी #रिश्ते #gazal #गज़ल #hindishayari #tarunvijभारतीय