आंधियां गमों की कितनी चली, कितनी गमों की हवा चली, बिस्तर पर पड़ा रहा मरीज,ठीक न हुआ, उसकी महीनों दवा चली, हकीम भी हताश,हुए बैद्य भी निराश, या खुदा ये क्या किया कैसी ये वबा चली, इक दिन अचरज में पड़ गए सब, ठीक हो गए मरीज पर कैसे,कौन सी दवा चली, पता चला कि ,,मां,,आ गई है गांव से, यारों सिर्फ ,,मां,,की दुआ चली, मां की दुआ,