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शहर जैसे हो गए हो तुम भी,बहुत व्यस्त रहने लगे हो.

 शहर जैसे हो गए हो तुम भी,बहुत व्यस्त रहने लगे हो..!
बदलता जैसे शहर का मिजाज,वैसे अंदाज़ हो गए हो ..!
शहर जैसी बोली बोल कर,अब गांव को पिछड़ा बताने लगे हो..!
कभी करते थे मोहब्बत भरी बातें,अब नखरे दिखाने लगे हो..!
ये शहर की हवा का कैसा जादू है,जो भी गांव छोड़ शहर गया..!
वो गाँव का कम,शहर का ज्यादा हो गया..!
मिलती हुयी सुविधाओं ने,जैसे अपनों से दूर किया हो..!
अपने परिवार से अलग,रहने को मजबूर किया हो..!
शहरी चाल ढाल दिखा कर,यूँ इतराने लगे हो..!
चलो अच्छा है हमसे दूर रहकर,कमाने जो लगे हो..!

©SHIVA KANT
  #shaharjaisetum