जो आता है मेरी तन्हाईयों में रूख दुबारा क्यों नहीं करता मेरी वीरानियों में साथी कोई मुझको पुकारा क्यों नहीं करता इक बार सुन लेता है मेरी दर्द-ए-दिल की दास्तां न जाने कोई दूसरी मर्तबा ग़ुफ्तगू गंवारा क्यों नहीं करता साथ गर ना दे सको तो हाथ भी न बढ़ाओ मेरी तरफ मैं तो मदहोश हुं गमों से आपका होश कोई इशारा क्यों नहीं करता ये किसी का आधा-अधूरा आकर जाना जानलेवा है मेरे लिए क्यों लिए बैठा हैं तू इश्क का कर्ज इसे अब उतारा क्यों नहीं करता क्यों नहीं करता