हमारी बचकानी ख्वाहिशों के बोझ तले आकर हर बार रविवार मर जाता है कितनों का बोझ लिए है यह रविवार भी अपना सा है अधूरी कहानियां अधूरी कविताएं सब रविवार को ही ताकती रहती हैं और तुमसे मिलने की ख्वाहिश उसका भी तो रविवार ही दिन है बुक्शेल्फ की दराजों से आती खुशबू मुझे अपनी और आकर्षित करती रहती है और मैं उस खुशबू को भी रविवार को ही आने को कहती हूँ कुर्सी पर पड़े कपड़ों के ढेर मेज के नीचे से झाँकती धूल रविवार का इंतज़ार कर रही है और गमले के फूल वह भी इस आस में खिले हुए हैं कि उन पर नेह वर्षा अवश्य होगी वह मेरी प्रतीक्षा कर कर के कुम्हला गए हैं बस अब जीवन के अंतिम चरणों में हैं और गौरेया वो भी दिन देखकर ही अब छत पर आती है और सप्ताह भर की उनींदी आंखें कैलेंडर पर तुम्हारी तारीख ही छानती है रविवार तुम कितनों का बोझ उठाओगे तुम्हारे कंधों पर कितना भार है मुझे तुम्हारी चिंता है कि हम सब की अभिलाषाओ की पूर्ति करते करते तुम एक दिन चल बसोगे और विलुप्त हो जाओगे दुनिया में निस्वार्थ लोगों की तरह!