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ये प्रेमी गगन वो प्रेयसी धरा जलद अश्रु से रूप धरे

ये प्रेमी गगन वो प्रेयसी धरा
जलद अश्रु से रूप धरे हरा
उमड़ते मेघ ले जल की देग
पवन संग आह उड़लते वेग
ये अश्रु नीर हरे तब पीर
वसुन्धरा करे स्वयं का चीर
प्रणय संतप्त करे भू व्यक्त 
बरस निज ठौर अभी अतृप्त
     
  ये प्रेमी गगन वो प्रेयसी धरा     
जलद अश्रु से रूप धरे हरा       
उमड़ते मेघ ले जल की देग
पवन संग आह उड़लते वेग
ये अश्रु नीर हरे तब पीर
वसुन्धरा करे स्वयं का चीर।
प्रणय संतप्त करे भू व्यक्त 
बरस निज ठौर अभी अतृप्त
ये प्रेमी गगन वो प्रेयसी धरा
जलद अश्रु से रूप धरे हरा
उमड़ते मेघ ले जल की देग
पवन संग आह उड़लते वेग
ये अश्रु नीर हरे तब पीर
वसुन्धरा करे स्वयं का चीर
प्रणय संतप्त करे भू व्यक्त 
बरस निज ठौर अभी अतृप्त
     
  ये प्रेमी गगन वो प्रेयसी धरा     
जलद अश्रु से रूप धरे हरा       
उमड़ते मेघ ले जल की देग
पवन संग आह उड़लते वेग
ये अश्रु नीर हरे तब पीर
वसुन्धरा करे स्वयं का चीर।
प्रणय संतप्त करे भू व्यक्त 
बरस निज ठौर अभी अतृप्त
vijaytyagi5239

Vijay Tyagi

New Creator