इक दर्द है जिगर में मुहब्बत का, क्या करें.. उस पर शराब पीने की आदत का क्या करें। लेटे हैं घर में फ़र्श पे पर ऐ शबे फ़िराक़.. तू ही बता टपकती हुई छत का क्या करें। कल देर रात लिखी एक ग़ज़ल के दो अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ, अर्ज़ किया है- #जॉनएलिया शबे फ़िराक़- विरह की रात