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पापा कि परी को पापा कि परी से मोहब्बत हु समाज में

पापा कि परी को पापा कि परी से मोहब्बत हु
समाज में ऐ बात कुछ इस तरह हवा हुईं
दिल्लगी एक लड़के को लड़के से ही हुईं
चरित्रहीन नाम दिया ऐ खुदा ऐसा क्या गुनाह किया।
       
  इंद्रधनुष की पहचान दें आठ रंगों में रंग दिया
         लेकिन तुम्हारी सोच ने बेरंग क्यों कर दिया
         प्यार कि इस दुनिया में हमें क्यों ये अधिकार नहीं
         समलैंगिक होना अपराध है क्या, हम ईश्वर की देन नहीं।

दे दिये कई नाम हमें gay , lesbian , किन्नर और भी है
मंजूर है हमें हर नाम तुम्हारा मगर फिर भी क्यों हम तुम्हें मंजूर नहीं 
हां हूं मैं थोड़ा अलग, समझता हूं केवल मोहब्बत को
फर्क नहीं पड़ता जाति ,धर्म लिंग से, 
हां हूं मैं थोड़ा अलग ओर से।
   
   किन्नर को समान अधिकार नहीं, उनके साथ शिक्षा मंजूर नहीं
      फिर क्यों सिर पर हाथ उनका वरदान लगे 
      बच्चे का जन्म हो या हो शादी का माहौल उनका आना शुभ कहें।

राजनीतिक मुद्दा बना सब खेल ये खेल रहे हैं 
हर दाव अपने पक्ष में बेवजह ही खींच रहे 
बदलते समाज के साथ बदलना चाहिए ये सब कहते हैं मगर 
एक बदलाव के लिए फिर क्यों वर्षों लगा रहे।
      
  छुप-छुप कर जीते रहते है इस डर में घूंटते रहते हैं
        पता चले घर वालों को गर तों घर से निकाल दिये जातें हैं 
        अब तो समझों हमें कोई , पहचान ये ना छुपानी पड़े
        इंद्रधनुष जो दिखता कभी लगता वो भी अनोखा है 
        अलग नहीं इस समाज से हम, बस नजरिए का फर्क है
        अब तो समझों हमें कोई बस इतनी ही दरख़्वास्त है।।

©JYOTI sahu
  #LGBTQ
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JYOTI sahu

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#LGBTQ #Poetry

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