हमेशा जीत की चाह में चलता रहा कभी खुद पे कभी किस्मत पर ऐतबार करता रहा जब लगा कुछ हारा सा, कुछ सीख लिया, कभी गैरों से मोहब्बत मिली, कभी हमने भी दिल जीत लिया, बस, अदब के मुशायरे कुछ नामाकूल से थे, शोर सब के अंदर,बाहर दामन सफेद थे इजहार-ए-बगावत दर पर खड़ी जश्न-ए-खौफ लुटने का शोर था, कुछ मुरीद बने पड़े थे बीते कल के कहीं मिलना भी खुद से कोसों दूर था, कुछ ढलती शाम को उगता सूरज समझ बैठे थे कुछ को आते कल की रोशनी से भी बैर था, हम शांत बैठे, मुकम्मल जहां की चाह में, जज्बात परोस रहे थे, पता ना चला कब मैं मयस्सर हुई, इंसान खाली और बीच महफिल हम खड़े, जिस्म छलनी,लिए रूह आधी । (नामाकूल-: अनुचित, मैं-: घमण्ड, मयस्सर-: प्राप्त)* #insaan #2chehare #twinfaces #vakt #samaj #dilkibat #haalaat #aaina #jasbaat #aawaj #sach #dhong #ham