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महकी महकी सी फ़ज़ा और रात भी शबनमी हैं. ख़्वाबों के

महकी महकी सी फ़ज़ा
और रात भी शबनमी हैं.

ख़्वाबों के आसमान में
यादों की चांदनी है.

वो जो नहीं पास मेरे
कुछ अलगसी ये बेचैनी हैं.

अब चाँद तू हीं बता
क्या मेरे यार की
कोई खबर तुझे आई हैं?

क्या सच में उसे 
ये जुदाई रास आई हैं?

©00_Ash
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